
हिज़्बुल्लाह पर अपने आक्रमण से इसराइली नेता उल्लास में नज़र आ रहे हैं.
पेजर, वॉकी टॉकी में विस्फोट से शुरू हुई कार्रवाई अब जानलेवा हवाई हमलों में बदल गई है.
23 सितंबर को किए हमले के बाद इसराइली रक्षा मंत्री याओव गैलेंट अपनी ही पीठ थपथपाने से ख़ुद को रोक नहीं पाए.
उन्होंने कहा, ”आज जो हुआ, वो मास्टरपीस था. अपने बनने के बाद से हिज़्बुल्लाह के लिए ये अब तक का सबसे बुरा हफ़्ता है. नतीजे ख़ुद इसकी गवाही दे रहे हैं.”
गैलेंट ने कहा, ”हवाई हमलों में हज़ारों रॉकेट तबाह किए गए. ये रॉकेट इसराइली नागरिकों की जान ले सकते थे.”
लेबनान का कहना है कि इसराइली हमलों में 550 आम नागरिक मारे गए हैं, इनमें 50 बच्चे भी शामिल हैं. 2006 से हिज़्बुल्लाह की अब तक की जंग में कुल जितने लोग मारे गए है, ये ताज़ा आंकड़ा मौत के उस आंकड़े से दोगुना है.
इसराइल चाह क्या रहा है?
इसराइल का मानना है कि भीषण कार्रवाई के ज़रिए अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए हिज़्बुल्लाह को मजबूर किया जा सकेगा.
इसराइल चाहता है कि इतना दर्द दिया जाए कि हिज़्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह, उनके सहयोगियों और ईरानी समर्थक फ़ैसला करें कि प्रतिरोध की क़ीमत कुछ ज़्यादा चुकानी पड़ रही है.
इसराइली नेता और जनरलों को जीत की ज़रूरत है.
ग़ज़ा में एक साल का युद्ध दलदल की तरह हो गया है. हमास के लड़ाके अब भी सुरंगों से निकल आते हैं और इसराइली सैनिकों को नुक़सान पहुँचा देते हैं. हमास के क़ब्ज़े में अब भी इसराइली बंधक हैं.
एक साल पहले हमास ने इसराइल को चौंका दिया था. इसराइलियों ने हमास को बड़ा ख़तरा नहीं माना था, इसके भयानक अंजाम भी हुए.
मगर लेबनान अलग है.
इसराइली डिफेंस फोर्स यानी आईडीएफ़ और ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद 2006 में हुए युद्ध के बाद से हिज़्बुल्लाह पर जंग छेड़ने की तैयारी कर रहे थे.
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का मानना है कि अभी के आक्रमण के ज़रिए हिज़्बुल्लाह के हाथ से सत्ता या ताक़त खींचने के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा.
नेतन्याहू चाहते हैं कि हिज़्बुल्लाह इसराइल में रॉकेट दागना बंद करे.
इसराइली सेना का कहना है कि वो सरहद से हिज़्बुल्लाह को पीछे धकेलना चाहती है. सेना की कोशिश है कि इसराइल के लिए ख़तरा बने सैन्य ठिकानों को भी बर्बाद कर दिया जाए.
दूसरा ग़ज़ा?
बीते हफ़्ते लेबनान में जो हुआ, उसने एक साल पहले की यादें ताज़ा कर दीं. इसराइल ने नागरिकों को चेतावनी जारी की. ग़ज़ा में भी लोगों से हमले वाली जगह से दूर रहने के लिए कहा गया था.
इसराइल हिज़्बुल्लाह को भी वैसे ही कसूरवार ठहरा रहा है, जैसे वो हमास को ठहराता था कि नागरिकों का मानवीय ढाल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.
इसराइल के दुश्मनों और आलोचकों का कहना है कि इसराइल की चेतावनी ढंग से नहीं दी गई, इतना वक़्त भी नहीं मिला कि परिवारों को सुरक्षित निकाला जा सके.
युद्ध का क़ानून ये कहता है कि नागरिकों की रक्षा होनी चाहिए, सेना का अंधाधुंध और अनुपातहीन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
हिज़्बुल्लाह के कुछ हमलों में इसराइल के भी रिहायशी इलाक़े निशाने पर आए. इससे नागरिकों की रक्षा को लेकर बने क़ानून टूटे.
हिज़्बुल्लाह ने इसराइली सेना को भी निशाना बनाया.
इसराइल, अमेरिका और ब्रिटेन हिज़्बुल्लाह को आतंकवादी संगठन मानते हैं.
इसराइल ज़ोर देकर कहता है कि उसकी सेना उसूलों वाली है जो नियमों को मानती है. मगर दुनिया के बड़े हिस्से ने ग़ज़ा में इसराइली सेना की कार्रवाई की निंदा की.
सरहद पर युद्ध के बढ़ने से हालात और गंभीर हो जाएंगे.
पेजर हमले से क्या समझ आता है?
आप हाल ही में पेजर के ज़रिए किए हमले का उदाहरण ले लीजिए. इसराइल का कहना है कि उसने हिज़्बुल्लाह के उन लड़ाकों को निशाना बनाया, जिन्हें पेजर जारी हुए थे.
मगर इसराइल ये नहीं जान सकता कि जब पेजर के अंदर विस्फोट होगा, तब वो शख़्स कहां खड़ा होगा. इसी कारण घरों में बच्चे, दुकानों और सार्वजनिक जगहों में लोग मारे गए या घायल हुए.
कई जाने-माने वकीलों का कहना है कि इससे साबित होता है कि नागरिकों और लड़ाकों के बीच कोई अंतर ना करते हुए इसराइल जानलेवा शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा था. ये युद्ध के नियमों का उल्लंघन है.
हिज़्बुल्लाह और इसराइल के बीच जंग 1980 के दौर से शुरू हुई थी. मगर सरहद पर ताज़ा जंग सात अक्तूबर 2023 के बाद से शुरू हुई.
जब नसरुल्लाह ने हमास के समर्थन में सीमित लेकिन लगभग रोज़ हमला करने के आदेश दिए. इस कारण इसराइली सेना को मुश्किलें हुईं. साथ ही सरहदी इलाक़े में रहने वाले क़रीब 60 हज़ार लोगों को अपना घर छोड़कर जाने को मजबूर होना पड़ा.
अतीत के आक्रमण की छाया
इसराइली मीडिया में कुछ लोग इन ताज़ा हमलों के असर को जून 1967 से जोड़कर देख रहे हैं.
1967 में इसराइल ने अचानक मिस्र पर हमला बोल दिया था. इस मशहूर हमले में मिस्र की वायुसेना बुरी तरह से बर्बाद हो गई थी. वायुसेना के ज़मीन पर थड़े विमानों को बर्बाद कर दिया गया.
अगले छह दिनों में इसराइल ने मिस्र, सीरिया और जॉर्डन को शिकस्त दी. उस जीत ने मौजूदा संघर्ष को दिशा दी.
इसराइल ने तब वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम, ग़ज़ा पट्टी और गोलान हाइट्स पर क़ब्ज़ा कर लिया.
ये एक अच्छी तुलना नहीं है. लेबनान और हिज़्बुल्लाह से जंग अलग बात है. इसराइल ने जबरदस्त प्रहार किया है.
मगर अब तक इसराइल हिज़्बुल्लाह की क्षमता और हमला करने की इच्छा शक्ति को झुका नहीं पाया है. इसराइल और हिज़्बुल्लाह की पुरानी जंग में किसी एक पक्ष की कोई तय जीत नहीं हुई.
ये ताज़ा जंग भी ऐसी ही हो सकती है. हालांकि बीते हफ़्ते की आक्रामक कार्रवाई से इसराइल, ख़ुफ़िया एजेंसी और सेना संतुष्ट है.
इसराइल की आक्रामता एक धारणा पर टिकी है- एक ऐसा जुआ है, जिसमें सोचा जा रहा है कि वक़्त आने पर हिज़्बुल्लाह हारकर सरहद से पीछे हट जाएगा. तब इसराइल गोलीबारी रोक देगा.
मगर हिज़्बुल्लाह की समझ रखने वाले लोगों का मानना है कि वो रुकेगा नहीं. इसराइल से जंग हिज़्बुल्लाह के अस्तित्व की मुख्य वजह है.
हिज़्बुल्लाह नहीं झुका तो इसराइल क्या करेगा?
अगर हिज़्बुल्लाह ने हार नहीं मानी तो इसराइल जंग का दायरा और बढ़ाएगा.
वहीं हिज़्बुल्लाह ने अगर उत्तरी इसराइल पर अपने हमलों से इसराइली नागरिकों की वापसी नहीं होने दी, तब नेतन्याहू की सेना को ज़मीन से हमला करने का सोचना होगा.
शायद इसराइली सेना ज़मीन के किसी हिस्से पर क़ब्ज़ा भी कर ले.
इसराइल लेबनान में पहले भी घुस चुका है. 1982 में इसराइली सेना फ़लस्तीनी छापेमारी रोकने की कोशिश में बेरूत तक पहुंच गई थी.
तब इसराइल के लेबनानी सहयोगियों ने बेरूत के सबरा और शतिला रिफ्यूज़ी कैंप में फ़लस्तीनी नागरिकों का जनसंहार किया था. इस क़दम की काफ़ी आलोचना हुई थी और इसके बाद इसराइली सेना को पीछे हटना पड़ा था.
1990 तक इसराइल का लेबनान की सरहद के पास बड़ी ज़मीन पर कब्ज़ा बना रहा. आज इसराइली सेना में जो जनरल बने बैठे हैं, वो तब नौजवान सैनिक थे. इन लोगों ने हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ तगड़ी लड़ाई लड़ी.
तब के इसराइली प्रधानमंत्री एहुद बराक ने 2000 में सेना को वापस बुलाने का फ़ैसला किया. बराक ने फ़ैसला किया है कि इस मोर्चे पर डटे रहने से इससे इसराइल सुरक्षित नहीं होगा और इसकी क़ीमत बहुत ज़्यादा संख्या में इसराइली सैनिकों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही थी.
2006 में हिज़्बुल्लाह ने सेना की भारी मौजदूगी वाले सरहदी इलाक़े में हमला किया. कई इसराइली सैनिकों को मारा गया और कुछ को बंधक बनाया गया.
जंग ख़त्म होने के बाद नसरल्लाह ने कहा कि अगर उनको अंदाज़ा होता कि इसराइल जवाबी कार्रवाई करेगा तो वो छापेमारी की अनुमति नहीं देते.
तत्कालीन इसराइली पीएम एमुड ओल्मर्ट ने इसके बाद युद्ध का एलान कर दिया था.
पहले इसराइल ने उम्मीद लगाई कि हवाई ताकत के बूते इसराइल पर रॉकेट हमले रोके जा सकेंगे. जब ऐसा नहीं हुआ तो ज़मीन पर सैनिक और टैंक उतारे गए. ये युद्ध लेबनान के नागरिकों के लिए घातक साबित हुआ.
मगर जंग के आख़िर दिन भी हिज़्बुल्लाह इसराइल पर रॉकेट दाग रहा था.
इसराइल की चुनौती
इसराइली कमांडर जानते हैं कि ग़ज़ा की तुलना में बरसते रॉकेटों के बीच लेबनान में घुसना बड़ी सैन्य चुनौती हो सकती है.
हिज़्बुल्लाह भी 2006 के बाद से योजनाएं बना रहा है. लेबनान अपनी ज़मीन पर लड़ रहा होगा. दक्षिणी लेबनान का पहाड़ी इलाक़ा और हालात ऐसे हैं जो हिज़्बुल्लाह के हक़ में जा सकते हैं.
हमास की बनाई सारी सुरंगों को इसराइल बर्बाद नहीं कर सका है.
दक्षिणी लेबनान के सरहदी इलाक़ों में बीते 18 साल हिज़्बुल्लाह ने सुरंग बनाने और अपनी स्थिति मज़बूत करने में लगाए हैं.
हिज़्बुल्लाह के पास ईरान के दिए हथियार भी हैं. ग़ज़ा में हमास के मुक़ाबले लेबनान में सीरिया के ज़रिए सप्लाई पहुंचाना आसान है.
वॉशिंगटन के थिंक टैंक द सेंटर फोर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ का अनुमान है कि हिज़्बुल्लाह के पास क़रीब 30 हज़ार लड़ाके हैं और 20 हज़ार रिज़र्व हैं. इनमें कुछ की ट्रेनिंग छोटे मोर्चे संभाल सकने की है. मगर कुछ ऐसे भी हैं, जिनको जंग का अच्छा अनुभव है. ये लोग असद शासन के समर्थन में सीरिया में लड़ चुके हैं.
ज़्यादातर अनुमानों में कहा गया है कि हिज़्बुल्लाह के पास एक लाख 20 हज़ार से दो लाख के बीच मिसाइल और रॉकेट हैं. इसमें ऐसे हथियार भी हैं जो कई इसराइली शहरों को नुक़सान पहुंचा सकते हैं.
इसराइल का दांव
हो सकता है कि इसराइल ये जुआ खेल रहा हो कि हिज़्बुल्लाह इन सारे हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा.
ये सोचकर कि इसराइली वायु सेना फिर लेबनान का भी वही करेगी, जो उसने ग़ज़ा का किया है. फिर चाहे पूरे शहर को मलबे के ढेर में बदलने की बात हो या फिर हज़ारों नागरिकों की जान लेना हो.
ईरान भी नहीं चाहेगा कि लेबनान हथियारों का इस्तेमाल कर ले. ईरान इन हथियारों को अपने परमाणु केंद्रों पर इसराइली हमलों के डर के मद्देनज़र बचाकर रखना चाहेगा.
ये एक दूसरा जुआ है.
इसराइल बर्बाद करे, इससे पहले ही हिज़्बुल्लाह इन हथियारों का इस्तेमाल करना चाहेगा.
ग़ज़ा में जारी हमले, वेस्ट बैंक में बढ़ती हिंसा के बीच अगर इसराइल लेबनान में घुसता है तो वो तीसरा मोर्चा खोलेगा.
इसराइली सैनिक भले ही प्रेरित, अच्छी ट्रेनिंग और हथियारों से लैस हैं मगर ये लोग एक साल से जारी जंग के चलते थक गए होंगे.
अमेरिका की अगुवाई में इसराइल के सहयोगी नहीं चाहते कि वो हिज़्बुल्लाह के साथ युद्ध को बढ़ाएं. ये देश लेबनान में घुसने के पक्ष में भी नहीं हैं.
इन देशों का ज़ोर इस बात पर है कि सिर्फ़ कूटनीतिक तरीकों से सरहदें सुरक्षित की जा सकती हैं और नागरिकों की घर वापसी हो सकती है.
शांति से समाधान निकलने की चुनौतियां
अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी ने समझौता तैयार किया. ये समझौता संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1701 से मिलता-जुलता है. इसी समझौते के चलते 2006 का युद्ध समाप्त हुआ था.
मगर ग़ज़ा में सीज़फायर ना होने के कारण राजनयिकों के हाथ बँधे हुए हैं.
नसरल्लाह का कहना है कि हिज़्बुल्लाह तभी रुकेगा, जब ग़ज़ा में इसराइली हमले रुकेंगे.
फ़िलहाल इसराइल और हमास ऐसे किसी समझौते पर तैयार नहीं हुए हैं, जिसे इसराइली बंधक, फ़लस्तीनी कैदी अदला-बदली में छूट जाएं और ग़ज़ा में सीज़फायर हो जाए.
लेबनान में अर्थव्यवस्था के कारण चुनौतियों का सामना कर रहे आम नागरिकों का दर्द इसराइली हमलों से और बढ़ा है.
डर सरहद के दोनों तरफ़ है.
इसराइली भी जानते हैं कि बीते साल से कहीं ज़्यादा नुक़सान हिज़्बुल्लाह कर रहा है.
इसराइल का मानना है कि वक़्त आ गया है कि आक्रामक रुख़ अपनाते हुए हिज़्बुल्लाह को सरहद से पीछे ढकेला जा सकता है.
मगर इसराइल का सामना ऊर्जा से भरी और हथियारों से लैस ताकत से है.
हमास के इसराइल पर किए हमले के बाद से बीते एक साल में ये सबसे ख़तरनाक संकट है.
मौजूदा वक़्त में ऐसा कोई नहीं है, जो हालात बदतर होने से रोक सके.