
Guillain-Barre Syndrome: इन दिनों पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) से पीड़ित लोगों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. यह ब्रेन से जुड़ी गंभीर बीमारी है. हालांकि डॉक्टर्स का कहना है कि यह इंफेक्टियस डिजीज नहीं है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती है.
Guillain-Barre Syndrome Cases in Pune: महाराष्ट्र के पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का कहर देखने को मिल रहा है. यहां करीब 73 लोगों की पहचान की गई है, जो ब्रेन की इस खतरनाक बीमारी से जूझ रहे हैं. राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि 47 पुरुष और 26 महिलाएं गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से पीड़ित पाए गए हैं और इनमें से 14 मरीजों को वेंटिलेटर पर रखा गया है. स्वास्थ्य विभाग इस बीमारी के अचानक बढ़ते मामलों का कारण ढूंढने की कोशिश कर रहा है. स्वास्थ्य अधिकारी महाराष्ट्र के कई इलाकों में घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर रहे हैं, ताकि इस बीमारी के मरीजों का पता लगाया जा सके. अब सवाल है कि यह बीमारी क्या है और यह किस तरह फैलती है? इस बारे में डॉक्टर से जान लेते हैं.
नोएडा के मेट्रो हॉस्पिटल के सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीरज कुमार ने News18 को बताया कि गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) एक ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. इस बीमारी में लोगों का इम्यून सिस्टम गड़बड़ हो जाता है और अपने ही नर्वस सिस्टम पर अटैक कर देता है. इससे ब्रेन की नसें डैमेज हो जाती हैं और लोगों की कंडीशन काफी बिगड़ जाती है. इस डिसऑर्डर की वजह से लोगों के शरीर की नसों, मसल्स और हाथ-पैरों में परेशानियां होने लगती हैं. यह बीमारी संक्रामक नहीं है और यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती है. पुणे में अचानक गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के मामले क्यों बढ़ गए हैं, इसका पता जांच में ही लगेगा, क्योंकि आमतौर पर ऐसा होता नहीं है. यह कोई नई बीमारी नहीं है और इससे घबराने की जरूरत नहीं है.
रोलॉजिस्ट ने बताया कि कई बार गुइलेन-बैरे सिंड्रोम इंफेक्टियस डिजीज नहीं होती है. इस बीमारी का कोई सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल सका है और इस बीमारी का नाम फ्रेंच न्यूरोलॉजिस्ट जॉर्जेस गुइलेन और जीन एलेक्जेंडर बैरे के नाम पर रखा गया है. इन दोनों ने ही साल 1916 में इस सिंड्रोम की खोज की थी. हालांकि कई मामलों में वैक्सीन लगवाने के बाद यह बीमारी फैल जाती है, क्योंकि शरीर में एंटीबॉडी क्रॉस हो जाती हैं. कई बार बैक्टीरियल इंफेक्शन और बड़ी सर्जरी के बाद भी यह डिसऑर्डर पैदा हो सकता है. अगर यह डिसऑर्डर सीवियर हो जाए, तो लोगों की मौत भी हो सकती है.
डॉक्टर नीरज कुमार के मुताबिक गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का इलाज करने के लिए दवाइयां उपलब्ध हैं और सही समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए, तो लोगों को काफी हद तक राहत मिल सकती है. इस बीमारी से किसी तरह का बचाव करने की जरूरत नहीं होती है. अस्पतालों में कभी-कभी इस बीमारी के मामले आते हैं, लेकिन पुणे में अचानक ज्यादा केस मिलना चौंकाने वाली बात है. ऐसे में जांच के बाद ही यह पता लगाया जा सकेगा कि मरीज गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से ही जूझ रहे हैं या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित हैं.