
Indian IT Companies in USA: अमेरिका में दूसरे देशों से प्रोफेशनल्स हायर करने के लिए H-1B Visa में कटौती के रुख से दुनिया भर में हाय तौबा मची हुई है. फिर भी भारतीय आईटी कंपनियों को इसकी चिंता नहीं है.
Strategy To Face Challenge Of H-1B Visa Crisis: अमेरिका में दूसरे देशों से प्रोफेशनल्स हायर करने के लिए H-1B Visa में कटौती के रुख से दुनिया भर में हाय तौबा मची हुई है. इसके बाद भी एच-1बी वीजा में सबसे अधिक हिस्सेदारी रखने वाली अमेरिका स्थित भारतीय आईटी कंपनियों को इसकी चिंता नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि टॉप 5 भारतीय आईटी कंपनियों में आधे से भी कम प्रोफेशनल्स अमेरिका से बाहर के हैं. ऐसे में दूसरे देशों से प्रोफेशनल्स हायर करने को लेकर भारतीय कंपनियों की बहुत अधिक निर्भरता नहीं है. बहुत ज्यादा संकट पैदा होने पर भारतीय कंपनियां अपने वर्क को भारत स्थित वर्कस्टेशन में ट्रांसफर कर सकती हैं.
TCS, Infosys मिलकर लेती हैं 20 फीसदी एच-1बी वीजा
मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में अमेरिका में एप्रूव हुए कुल एच-1बी वीजा में टीसीएस और इंफोसिस की हिस्सेदारी 20 फीसदी थी. इसके अलावा एचसीएल, टेक महिंद्रा और विप्रो जैसी कंपनियां भी अमेरिका में बड़ी इंप्लायर हैं, लेकिन नॉर्थ अमेरिका के अपने कोर मार्केट में ये फॉरेन प्रोफेशनल्स पर ज्यादा निर्भर नहीं हैं.
अमेरिका के सबसे बड़े सॉफ्टवेयर एक्सपोर्टर टीसीएस की लगभग आधी कमाई नॉर्थ अमेरिका से होती है. जबकि अमेरिका के वर्कफोर्स में से आधे से अधिक की नियुक्ति वहां स्थानीय स्तर पर की गई है. टीसीएस के एमडी कृतिवासन कहते हैं कि एच-1बी वीजा में कटौती के रुख से उन्हें चिंता नहीं है, क्योंकि सालों साल उनकी कंपनी की निर्भरता इस पर कम हो रही है और नियुक्तियों में अमेरिका की स्थानीय स्तर की हिस्सेदारी ज्यादा बढ़ रही है.
एच-1बी वीजा को लेकर क्यों बरपा है हंगामा
एच-1बी वीजा कंपनियों को साइंस, टेक्नलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथेमैटिक्स जैसे फील्ड में विदेश के स्पेशलाइज्ड प्रोफेशनल्स को अमेरिका में नियुक्ति का मौका देता है. डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका की कमान संभालने के बाद स्थानीय स्तर पर रोजगार को बढ़ावा देने के एलान के साथ ही एच-1बी वीजा को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. अपने पिछले कार्यकाल के बाद से ट्रंप ने इमिग्रेशन के खिलाफ कड़ा रवैया दिखाया है.