
डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की बात कही, जिसमें भारत भी शामिल है. भारत और चीन को एक तराजू में तोलना गलत है. भारत अमेरिका का स्वाभाविक पार्टनर है, जबकि चीन के साथ रिश्ते तल्ख हैं. ये पूरी रिपोर्ट बताती है कि भारत पर कड़ाई करना कैसे अमेरिका के लिए दर्द साबित होगा.
अमेरिका की सत्ता संभालते ही टैरिफ किंग डोनाल्ड ट्रंप ने पूरी दुनिया को ‘शेक’ करने के इरादे साफ कर दिए हैं. सोमवार को जब वे शपथ ले रहे थे, तब उन्होंने कहा था कि स्पेन सहित ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी तक का टैरिफ लगाया जा सकता है. ब्रिक्स में 10 देश आते हैं, जिनमें भारत भी है. इस बयान के बाद ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी सोच-विचार की मुद्रा में हैं. चीन पर लगता है कि ट्रंप की विशेष योजना भी है. चीन के साथ वह कुछ भी करे, भारत को उससे ज्यादा मतलब नहीं, मगर यदि वह चीन और भारत को एक ही तराजू में तोलने चला है, तो उसे एक बार ‘आंखों में पानी के छींटे मारकर’ देख लेना चाहिए.
दरअसल, चीन और भारत को एक-साथ एक नजर से नहीं देखा जा सकता. भारत जहां अमेरिका का स्वाभाविक पार्टनर है, वहीं चीन के साथ यूएस के रिश्ते तल्ख रहे हैं. चीन को टैकल करने के लिए किसी भी सूरत में अमेरिका को भारत की जरूरत है ही. यदि हम वर्तमान परिस्थितियों को बारीकी से देखें तो दोनों (चीन और भारत) से रिश्तों में अमेरिका को ‘गर्माहट’ भारत से ही मिलती है, न कि चीन से. इस तुलना को समझने के लिए हमें दोनों देशों के साथ अमेरिका के आर्थिक समीकरणों पर गहराई से नजर डालनी होगी.
आर्थिक चिंता चीन से होनी चाहिए
अमेरिका में भारतीय समुदाय जनसंख्या का केवल 1.5 प्रतिशत है, लेकिन उनका योगदान अमेरिका के टैक्स कलेक्शन में 5-6 प्रतिशत तक पहुंचता है. यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारतीय मूल के लोग न केवल प्रोफेनशली आगे हैं, बल्कि अमेरिका को आर्थिक रूप से भी मजबूती प्रदान कर रहे हैं. दूसरी ओर, चीन का जनसांख्यिकीय योगदान अमेरिका में तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन आर्थिक स्तर में उसकी चुनौती अधिक गंभीर है.