
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और समूची वानर सेना के लंका जाने के लिए जिस पत्थर से नल और नील ने समुद्र पर पुल बनाया था, उसके दर्शन अब महाकुंभ में भी हो रहे हैं.
Maha kumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ में संत महात्माओं की अनूठी साधना और चमत्कार कदम-कदम पर देखने को मिल रहे हैं. यहां सन्यासियों के जूना अखाड़े के नागा संत बृहस्पति गिरि और प्रयाग गिरि भारी पत्थर के पानी में तैरने का चमत्कार दिखा रहे हैं. बाबा का दावा है कि इस पत्थर का संबंध त्रेता युग में भगवान राम की कथा से जुड़ा हुआ है.
उनका कहना है कि जिस तरह से भगवान राम के आशीर्वाद से त्रेता युग में लंका युद्ध से पहले रामेश्वरम में डाले गए पत्थर समुद्र में तैर रहे थे और पुल बन गया था, इस तरह के आशीर्वाद से यह भारी पत्थर भी डूबने के बजाय पानी में तैर रहा है. जूना अखाड़े के नागा संन्यासी भारी पत्थर को पानी में तैराने का यह चमत्कार अखाड़े की छावनी में मुख्य द्वार के पास बनी अपनी कुटिया के बाहर दिखाते हैं.
उन्होंने एक बड़े बर्तन में पानी भर रखा है और उसी में इस पत्थर को छोड़ दिया है. पत्थर पर भगवान शिव की एक मूर्ति को रखा है. इस तैरते हुए पत्थर को देखने के लिए रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. कोई दूर से नमन करता है तो कोई पानी या पत्थर को छूकर आशीर्वाद लेता है. श्रद्धालु इस प्रभु राम का चमत्कार और नागा संत बृहस्पति गिरि और प्रयाग गिरि की साधना मानकर जयकारे लगाते हैं.
यह कोई चमत्कार नहीं है- बाबा
हालांकि बाबा का कहना है कि यह उनका कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि पत्थर रामेश्वरम से लाया गया है. पूजित होने और भगवान राम के आशीर्वाद के चलते भारी पत्थर पानी में डूबने के बजाय तैरता रहता है. नागा संत का कहना है कि इस पत्थर के दर्शन करने वालों को भगवान राम का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है.
इस बारे में जूना अखाड़े के थानापति महंत सुमेर गिरि का कहना है कि राम नाम में इतनी ताकत होती है कि पत्थर भी तैरने लगते हैं. रोज़ाना प्रभु राम के नाम का जाप करने वालों के सभी कष्टों का निवारण होता है और उसके जीवन में खुशहाली आती है.