
भारत में सड़क हादसों में बढ़ रही मौतों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ रही है. इंटरनेशनल रोड फेडरेशन ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है. यह तस्वीर बदलने की ज्यादा जिम्मेदारी सरकार से ज्यादा आप पर है. कैसे? आंकड़ों से समझिए
नई दिल्ली. फलां जगह भीषण सड़क हादसा, इतने मरे, इतने घायल…शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब इस तर्ज पर आने वाली खबरों से हमारा-आपका सामना नहीं होता हो। हम इन पर एक नजर डालते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. हम ऐसी खबरों के आदी हो चुके हैं. हम मान चुके हैं कि सफर के दौरान हादसा हो जाना एकदम आम बात है. अगर आप सड़क पर सफर कर रहे हैं तब तो यह और भी आम है. यह बात अलग है, सड़क हादसों पर मीडिया में उतना हंगामा नहीं मचता जितना रेल दुर्घटनाओं पर मच जाता है.
इस तथ्य के बावजूद कि सड़कों पर जहां रोज 1600 से ज्यादा हादसे हो रहे हैं, वहीं रेल दुर्घटनाओं की संख्या बीते दस साल में भी हजार से कम ही रही. फिर भी जहां लगभग हर रेल दुर्घटना के बाद रेल मंत्री का इस्तीफा मांगा जाने लगता है, वहीं रोज सैकड़ों सड़क हादसों के बावजूद कहीं किसी के खिलाफ आवाज उठती नहीं सुनाई देती. ऐसा बिल्कुल मत समझिएगा कि मेरा इरादा रेल मंत्री का बचाव करने का है। मेरा इरादा बस यह समझाने का है कि सड़क हादसों को रोकने के प्रति आपको ज्यादा गंभीर होने की जरूरत है, क्योंकि इसके लिए ज्यादा जवाबदेह भी आप ही हैं. सरकार की भी जिम्मेदारी है, पर आपकी ज्यादा है. मेरी इस बात को आंकड़ों के पैमाने पर परखिए, फिर सोचिए.
भारत में बीते दस सालों में 15 लाख लोगों ने सड़कों पर दम तोड़ा है. हालत इतनी खराब है कि इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता जताई जा रही है. इंटरनेशनल रोड फेडरेशन (आईआरएफ) ने इस पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है और इसे कम करने के उपाय सुझाए हैं. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय का आंकड़ा कहता है कि 2014 से 2023 के दस सालों में सड़क हादसों में 15.35 लाख लोग मारे गए और 45.1 लाख लोग घायल हुए. इसके पहले के दस सालों (2004-2013) में 12.1 लाख लोग मारे गए और 50.2 लाख घायल हुए थे.
लॉकडाउन वाले साल में भी नहीं थमीं मौतें
साल | सड़क हादसों में मरने वाले (लाख) | सड़क हादसों में घायल (लाख) |
2014 | 1.4 | 4.93 |
2015 | 1.46 | 5.0 |
2016 | 1.51 | 4.95 |
2017 | 1.48 | 4.71 |
2018 | 1.58 | 4.65 |
2019 | 1.59 | 4.49 |
2020 | 1.38 | 3.47 |
2021 | 1.54 | 3.84 |
2022 | 1.68 | 4.43 |
2023 | 1.73 | 4.63 |
रेल हादसों की बात करें तो 2004 से 2014 तक भारत में 1,711 रेल हादसे हुए। इनमें 2453 जानें गईं और 4486 लोग जख्मी हुए. 2014 से मार्च 2023 के बीच 638 रेल दुर्घटनाओं में 781 मौतें हुईं और 1543 लोग घायल हुए. भारत में सड़क हादसों में मौतों का आंकड़ा प्रति 10 हजार किलोमीटर पर 250 है. यह चीन, अमेरिका जैसे देशों से कई गुना ज्यादा है. अमेरिका में जहां यह आंकड़ा 57 है, वहीं चीन में 119 और ऑस्ट्रेलिया में तो महज 11 है.
केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने हाल ही में कहा था कि सड़क हादसों के चलते भारत में हर जीडीपी के तीन प्रतिशत के बराबर नुकसान हो जाता है. मतलब जान-माल के लिहाज से सड़क हादसों की रेल दुर्घटनाओं से कोई तुलना ही नहीं है. फिर भी, सड़क हादसों को लेकर हमारी उदासीनता कम नहीं हो रही.
…क्योंकि हम ही हैं जिम्मेदार?
2022 में सड़क हादसों में मरने वाले 50,029 लोग ऐसे थे जो बिना हेलमेट पहने बाइक चला रहे थे. 2022 में 70 प्रतिशत से ज्यादा सड़क हादसों और इनमें हुई मौतों का कारण तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना बताया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सड़क सुरक्षा से जुड़ी ताजा रिपोर्ट में भी सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण तेज रफ्तार को ही बताया गया है. इसके बाद शराब पीकर गाड़ी चलाना और गाड़ी चलाते समय ध्यान भटकना दो बड़े कारण हैं. अन्य कारणों में खराब रोड इंजीनियरिंग, सड़कों पर गड्ढों का होना, ज्यादा पुरानी गाड़ी चलाना और ओवरलोडिंग को रखा गया है.
सड़कों पर बढ़ रहा है लोड
2012 में जहां वाहनों की संख्या 15.9 करोड़ थी, वहीं 2024 आते-आते यह 38.3 करोड़ पर पहुंच गई। देश में सड़कों की लंबाई 2012 में जहां 48.6 लाख किलोमीटर थी, वहीं 2019 में 63.3 लाख किलोमीटर हो गई. सड़कों की लंबाई बढ़ तो रही है, लेकिन वाहनों की संख्या के अनुपात में यह बहुत कम है. फिर भी, जानकारों की राय में वाहनों की संख्या और सड़कों की लंबाई का सड़क हादसों से कोई गहरा संबंध नहीं है। असल समस्या है सड़क सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए जरूरी तालमेल (पुलिस, प्रशासन, राज्य सरकार, केंद्र सरकार, गैर सरकारी एजेंसी, जनता आदि के बीच) का अभाव, लोगों में नियमों के प्रति उदासीनता और सड़कों के रखरखाव पर सरकार का पर्याप्त ध्यान नहीं होना.
सड़क के रखरखाव पर सरकार का खर्च देखें तो यही लगता है कि इस पर सरकार का ज्यादा जोर नहीं है. 2019-20 में सरकार ने सड़कों और राजमार्गों के रखरखाव के लिए जो अनुमानित बजट दिया, उसका केवल 53 प्रतिशत ही खर्च किया गया. 2021-22 में इस मद में जो बजट (2680 करोड़ रुपये) रखा गया, वह मंत्रालय के कुल बजट का मात्र दो फीसदी था. वहीं, अगर अमेरिका से तुलना करें तो 2020-21 में वहां की सरकार ने हाईवेज के लिए कुल बजट का 51 प्रतिशत नेशनल हाईवे परफॉर्मेंस प्रोग्राम के लिए रखा। इस प्रोग्राम के तहत करीब 3.5 लाख किलोमीटर लंबे राजमार्गों की स्थिति बेहतर किया जाना था और नेशनल हाईवे सिस्टम का प्रदर्शन भी सुधारना था.
2014 में भारत की नेशनल ट्रांसपोर्ट डेवलपमेंट पॉलिसी कमेटी ने भी माना था कि यहां सड़कों के रखरखाव पर किया जाने वाला खर्च कम है. साथ ही, यह भी कहा था कि मरम्मती खराब होने के बाद ही की जाती है, इस बात पर फोकस नहीं है कि रखरखाव के दम पर सड़कों को खराब स्थिति में आने नहीं दिया जाए. 2018 और 2020 में परिवहन मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने इस बात पर चिंता जताई थी कि सड़कों के रखरखाव के लिए आवंटित पूरा पैसा सही तरीके से खर्च नहीं किया जाता है. समिति लगातार यह भी कहती रही है कि नेशनल हाईवे के रखरखाव के लिए दिया जाने वाला बजट पर्याप्त नहीं है. 2018 में नीति आयोग का आंकलन था कि आवंटन जरूरत का मात्र 40 फीसदी ही है. तो सरकार की जिम्मेदारी कहां है, यह आप समझ गए होंगे। लेकिन, इससे ज्यादा जरूरी है आपको अपनी जिम्मेदारी समझना. सड़क सुरक्षा से जुड़े नियमों के प्रति जिम्मेदार बनना. आखिर जिंदगी आपकी है, सरकार या किसी और की नहीं.