
Tirupati Venkateswara Temple : तिरुपति मंदिर केवल एक मंदिर नहीं बल्कि बहुत बड़ी धार्मिक अर्थव्यवस्था है, जिसमें रोजाना तमाम तरह के काम संचालित किए जाते हैं. कौन सा बोर्ड इसके कामकाज को देखता है और वह कैसे चुना जाता है.
अगर आप गूगल करेंगे तो पता लगेगा दुनिया में जो पांच सबसे धनी मंदिर या धार्मिक स्थान हैं, उसमें तिरुपति बाला जी वेंकटेश्वर मंदिर दूसरे नंबर पर है. पहले नंबर पर केरल का पद्मनाभन मंदिर है. तिरुपति की सालाना कमाई 420 करोड़ रुपए है. ये मंदिर अब केवल एक धार्मिक स्थान ही नहीं रहा बल्कि एक ऐसी बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो पूरे एक शहर को चलाती है. एक पूरा कस्बा इसके पैसे से रोज दौड़ता-भागता है. यहां रोज तकरीबन एक लाख लोग दर्शन के लिए आते हैं. कौन चलाता है तिरुपति मंदिर को. कौन से लोग इसको कंट्रोल करते हैं. जाहिर सी बात है कि ये लोग खासी रसूख वाले और ताकतवर लोग होते होंगे.
जानते हैं कि तिरुपति के वेंकटेश्वर मंदिर की संरचना क्या है. मतलब इसे कैसे चलाया जाता है. कौन से लोग रोज इसके कामकाज को प्रभावित और नियंत्रित करते हैं. ये मंदिर किसी की निजी संपत्ति नहीं है बल्कि एक ट्रस्ट इसको चलाता है. इस ट्रस्ट का पूरा नाम तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) है. इसका संचालन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त ट्रस्ट मंडल द्वारा किया जाता है. ये ट्रस्टी ही असल में तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर का मैनेजमेंट करते हैं. वो इसके संचालन, वित्तीय प्रबंधन और क्षेत्र के कई अन्य मंदिरों के रखरखाव और गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं.
मंदिर का ताकतवर ट्रस्ट 24 लोगों का होता है, हालांकि ये 29 लोगों का भी हो सकता है. इस ट्रस्ट का एक चेयरमैन होता है. इसे बोर्ड भी कहा जाता है. मंदिर की रोजाना के कामकाज और संचालन के लिए एक एग्जीक्यूटिव आफिसर (ईओ) यानि मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है. ये यह पद राज्य सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति द्वारा भरा जाता है.
बोर्ड यानि ट्रस्ट की संरचना कैसी होती है
बोर्ड में राज्य विधानमंडल के प्रतिनिधियों सहित अधिकतम 29 सदस्य हो सकते हैं. इसमें कई राज्यों के लोग होते हैं. TTD की स्थापना 1933 में TTD अधिनियम के तहत की गई थी. वर्तमान संरचना आंध्र प्रदेश धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्थान और बंदोबस्ती अधिनियम के तहत है. हालांकि मंदिर पर सरकारी कंट्रोल की आलोचना भी होती रही है.
कितना होता है कार्यकाल
एक ट्रस्टी का कार्यकाल तीन सालों का होता है. उसे फिर से नियुक्त किया जा सकता है या फिर उसकी जगह किसी नए व्यक्ति को ट्रस्टी बनाया जा सकता है, ये फैसला सरकार करती है. नियुक्ति पूरी तरह से आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा ही की जाती है. मौजूदा बोर्ड में कुछ विधायक हैं तो अलग अलग पृष्ठभूमि और अलग राज्यों के लोग भी. जो इसके प्रशासन में विविधता लाने की कोशिश करते हैं.
क्या होती है चयन प्रक्रिया
आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री आफिस नियुक्तियों की घोषणा करता है. फिर आए आवेदनों के जरिए ये सुनिश्चित करता है कि बोर्ड में अलग राज्यों, स्थानी और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को जगह दी जाए. मौजूदा बोर्ड सदस्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र के हैं.

जब सड़क मार्ग से तिरुपति शहर से आगे बढ़ते हैं तो तिरुमला पहुंचते ही भगवान बालाजी मंदिर का ये भव्य प्रवेश द्वार श्रृद्धालुओं का स्वागत करता है.
राजनीतिक दखल – बोर्ड के ज्यादातर लोग सियासी पार्टियों से ताल्लुक रखने वाले होते हैं. हालिया बोर्ड में 3 सदस्य वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के हैं. 4 सदस्य पूर्व अधिकारी होते हैं. मौजूदा अधिकारी भी होते हैं. साथ ही टीटीडी का एग्जीक्यूटिव आफिसर इस बोर्ड में सचिव की हैसियत भी रखता है.
चयन प्रक्रिया की आलोचना – टीटीडी के बोर्ड के चयन प्रक्रिया की लंबे समय से आलोचना होती रही है. चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर अंगुलियां उठाई जाती रही हैं.
बोर्ड चेयरमैन की नियुक्ति कैसे होती है
विशुद्ध तौर पर टीटीडी बोर्ड का चेयरमैन राजनीतिक अप्वांटी ही होता है. ये या तो सत्ताधारी पार्टी का ही कोई असरदार शख्सियत होता है या फिर गठबंधन पार्टनर्स में से चुना जाता है. इस पद के रसूख और मंदिर मामलों में असर को देखते हुए ये पद काफी बड़ा और अहम होता है. आमतौर पर चेयरमैन का नामांकन मुख्यमंत्री द्वारा ही किया जाता है. अगर कई लोग इस पद की दौड़ में हैं तो इसका अंतिम फैसला भी मुख्यमंत्री को ही करना होता है. इस पद के लिए जबरदस्त लॉबिंग, जोड़तोड़ और असर का इस्तेमाल किया जाता है.
बोर्ड चेयरमैन का कार्यकाल कितना है
बोर्ड के सदस्य की तरह बोर्ड चेयरमैन का कार्यकाल भी तीन सालों के लिए होता है. उसे भी अगले तीन सालों के लिए फिर से नियुक्त किया जा सकता है या फिर नए व्यक्ति को चेयरमैन बनाया जा सकता है.

तिरुपति मंदिर का परिसर अंदर से काफी बड़ा है. इसके कई हिस्से हैं.
TTD का कार्यकारी अधिकारी कौन होता है
तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के कार्यकारी अधिकारी (EO) की नियुक्ति आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा की जाती है. इस नियुक्ति में आमतौर पर एक वरिष्ठ नौकरशाह, अक्सर एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी शामिल होता है, जिसका चयन उसके अनुभव और योग्यता के आधार पर किया जाता है. ज्यादा सीनियर IAS अधिकारी ही इस पद के लिए चुने जाते हैं.
उदाहरण के लिए, जे. श्यामला राव को हाल ही में उच्च शिक्षा के प्रधान सचिव के रूप में अपने पिछले पद से मुक्त होने के बाद EO के रूप में नियुक्त किया गया.
ईओ यानि एग्जीक्यूटिव आफिसर क्या करता है
वह टीटीडी के सभी प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करता है, जिससे मंदिर संचालन और तीर्थयात्रियों के लिए सेवाओं का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित होता है. इस भूमिका में वह रोजाना के कामकाज समेत नई रणनीतियां बनाने और उनका क्रियान्वयन करने का काम भी करता है.
कैसे बदलती रही टीटीडी में बोर्ड की स्थिति
टीटीडी की स्थापना 1932 के टीटीडी अधिनियम के तहत की गई थी. शुरुआत में इसका प्रबंधन सात सदस्यों की एक समिति द्वारा किया जाता था, जो मद्रास सरकार द्वारा नियुक्त एक वेतनभोगी आयुक्त के तहत आती थी. इस संरचना में मंदिर संचालन और भूमि प्रबंधन में सहायता के लिए पुजारियों और स्थानीय किसानों से बनी सलाहकार परिषदें शामिल थीं.
फिर बोर्ड में कैसे लोग बढ़े
1969 अधिनियम – आंध्र प्रदेश धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्थान और बंदोबस्ती अधिनियम ने टीटीडी के लिए प्रावधानों का विस्तार किया, ट्रस्टियों की संख्या पाँच से बढ़ाकर ग्यारह कर दी.
1987 अधिनियम- इस अधिनियम ने ट्रस्टियों की अधिकतम संख्या बढ़ाकर पंद्रह कर दी. मंदिर के पुजारियों द्वारा मंदिर के राजस्व पर पहले से रखे गए वंशानुगत अधिकारों को समाप्त कर दिया. अब मंदिर में कुल 24 ट्रस्टी हैं.