
Mahabharata Katha: अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने वेश बदलकर मत्स्य राजा विराट के साम्राज्य में शरण ली. राजा विराट के साले कीचक ने द्रौपदी को परेशान किया को भीम ने उसकी जान ले ली थी.
वनवास के 12 साल काटने के बाद तेरहवां साल आया तो पांडव अज्ञातवास की योजना बनाने लगे. पांडव यह सोच रहे थे कि आखिर दुर्योधन और उसके गुप्तचरों से सुरक्षित रहने के लिए कहां छिपा जाए. युधिष्ठिर ने कहा कि दुर्योधन या तो हमें द्रुपद के राज्य में खोजेगा या द्वारका में. ऐसे में इन दोनों जगहों पर जाना संभव नहीं है. इसी बीच अर्जुन को मत्स्य साम्राज्य विराट नगर की याद आई. अर्जुन ने कहा कि मत्स्य राजा विराट बहुत नेक और धार्मिक व्यक्ति हैं. वह हमारे चचेरे भाई दुर्योधन से घृणा करता हैं. इसलिये निश्चित तौर पर वह हमें संरक्षण देंगे और वहां हम सुरक्षित भी रहेंगे. सबने अर्जुन से सहमति जताई. लेखिका नमिता गोखले अपनी किताब ‘महाभारत’ में लिखती हैं कि इसके बाद पांडव यह सोचने लगे कि अज्ञातवास के एक वर्ष में कौन वेश रखें, ताकि कोई उन्हें पहचान न पाए.
अज्ञातवास में पांडवों ने कौन सा वेश धरा
युधिष्ठिर ने कहा किमैं कंक बनकर राजा विराट के सहयोगी के तौर पर कार्य करूंगा. इसमें धर्मग्रंथों और शास्त्रों का मेरा ज्ञान उपयोगी सिद्ध होगा. भीम ने एक रसोइए के रूप में काम करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि मैं अपने बचे हुए समय में पहलवानों को व्यायामशाला में प्रशिक्षित भी करूंगा. अर्जुन के सामने समस्या थी कि उन्हें किसी भी वेश में लोग पहचान लेते क्योंकि उनके दोनों कंधों पर धनुष गांडीव के चिह्न बन गए थे. दूर-दराज के देशों के लोगों को भी पता था कि अर्जुन दोनों हाथों से धनुष चलाते हैं. अर्जुन ने हंसते हुए कहा यह समय अप्सरा उर्वशी के शाप को अमल में लाने का है.
उर्वशी ने अर्जुन को एक साल के लिए किन्नर बनने का शाप दिया था. अर्जुन ने अपने भाइयों से कहा कि पिता इंद्र का सुझाव था कि मैं वनवास के तेरहवें वर्ष में खुद को छिपाने के लिए इसका प्रयोग करूं और मैं यही करने की सोच रहा हूं. नकुल ने मत्स्य राजा के अस्तबल में काम करने का निर्णय लिया क्योंकि वो इस काम में पारंगत थे. वह घोड़ों से बातें कर सकते थे और उनकी हर बात सुनते थे. सबसे छोटे सहदेव गायों और मवेशियों के देखभाल का जिम्मा उठाने का फैसला किया.
द्रौपदी ने अज्ञातवास में क्या वेश धरा?
सबसे आखिर में द्रौपदी की बारी आई. महाभारत में जिक्र मिलता है कि द्रौपदी ने सैरंध्री (नाई या प्रसाधिका) का वेश धरकर खुद को छिपाने का निर्णय लिया. द्रौपदी ने कहा कि मत्स्य रानी को सजने-संवरने का शौक है. मैं उनके बालों को सजाऊंगी और श्रृंगार में सहायता करूंगी. हालांकि पांडवों को संदेह था कि इंद्रप्रस्थ की रानी आखिर पूरे एक साल दासी के रूप में कैसे काम करेंगी? लेकिन उन्हें द्रौपदी की बात माननी पड़ी.
अज्ञातवास में अस्त्र-शस्त्रों को कहां छिपाया?
नमिता गोखले लिखती हैं कि अब पांडवों के सामने एक और समस्या थी कि वो अपने अस्त्र-शस्त्रों का क्या करें? काफी चर्चा के बाद उन्होंने एक योजना बनाई. अर्जुन ने अपने धनुष की प्रत्यंचा खोल दी. पांडव पास के एक श्मशान घाट पर गए, जहां ग्रामीण मृतकों का अंतिम संस्कार करते थे. अर्जुन के गांडीव और भीम की भारी गदा सहित सारे शस्त्रों को कपड़े में लपेटकर उन्होंने इसे अपनी मां का पार्थिव शरीर बताया. पांडव रोते हुए बोले, ‘हाय, वह बहुत बुद्धिमान महिला थीं पर अत्यन्त वृद्ध हो गई थीं.
अब उनकी मृत्यु हो गई है तो हमें श्मशान में उनके शव को एक साल के लिए सबसे ऊंचे शमी के पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर रखना होगा. यही हमारे देश की प्रथा है. जो कोई उनका शव छुएगा, उसे शाप लगेगा और वह तुरंत मर जाएगा. इस कहानी से ग्रामीण डर गए और उनके अस्त्र-शस्त्रों से दूर बने रहे. पांडवों ने इंद्र, वरुण और ब्रह्मा जैसे देवताओं का आह्वान किया और उनसे अपने शस्त्रों की रक्षा करने की प्रार्थना की. देवताओं ने आश्वासन दिया कि वे उनके निवेदन का सम्मान करेंगे.
पांडव मत्स्य राजा विराट के यहां आ गए और पहले से तय वेश में रहने लगे. मत्स्य रानी सुदेशना का बड़ा भाई था, जिसका नाम कीचक था. वह बहुत बलवान था. राजा विराट ने अपने साम्राज्य की रक्षा का जिम्मा साले कीचक को दे रखा था. एक दिन कीचक अपनी बहन से मिलने आया तो उसकी नजर द्रौपदी पर पड़ी. वह नई दासी पर चुंबक की तरफ आकर्षित हो गया और उपहार जैसी चीजों का लालच देकर आकर्षित करने की कोशिश की. द्रौपदी ने उसे दूर रहने को कहा लेकिन कीचक दिन-रात उनके पीछे पड़ गया और तंग करने लगा. आखिरकार एक दिन द्रौपदी चुपके से रसोई में गईं और भीम को पूरा वाकया बताया. भीम गुस्से में लाल हो गए उसी समय चाकू लेकर कीचक को मारने दौड़े.